घर से दूर हैं, परिवार से दूर हैं, खेत खलिहान से दूर हैं, गाय गोरु से दूर हैं, किन्तु फिर भी अगर दिल की बात बताएं तो ये गाँव भी अपने गाँव से कुछ ज्यादा अलग नहीं है।
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एकरे कहता है जरल लोग, साला सुबह-सुबह राक्षस भी अपने इष्टदेव का उच्चारण करता है इ मानुष को का गवा है जो चुतिया से शुरू हुआ है आगे कहाँ तक जावेगा तो वो ऐसे शुरू हुए '' अभी संजय गांधी जैविक उद्यान में घूम रहे हैं, और तुमको फोन कर रहे हैं, तुम ढेर काबिल मत बनो, विधायक जी साथे में हैं, तोएं ऐसे नही सुधरेगा कारे, देख तोरा बाप दादा जितना गाय गोरु लोग है न तू उतना फर फर मत कर..